‘राम की शक्ति पूजा’ — प्रश्नोत्तर एवं व्याख्या
🕉️ ‘राम की शक्ति पूजा’ — प्रश्नोत्तर एवं व्याख्या
(महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ कृत)
1. ‘राम की शक्ति पूजा’ कविता से संबंधित असंगत कथन है –
(1) राम–रावण समर का इतना विराट चित्र दुर्लभ है।
(2) राम को शक्ति की पूजा का सुझाव जामवंत से मिला था।
(3) राम की शक्ति पूजा का उल्लेख श्रीमद्भागवत पुराण में है।
(4) राम को रावण पर विजय का वरदान देवी से प्राप्त हुआ था।
(5) राम की शक्ति पूजा में राम मानव अधिक, देव कम हैं।
(6) कविता की अंतिम पंक्ति है —
“कह महाशक्ति राम के वदन में हुई लीन।”
उत्तर एवं व्याख्या: (3)
महाप्राण निराला द्वारा रचित ‘राम की शक्ति पूजा’ का आधार बांग्ला ग्रंथ ‘कृत्तिवास रामायण’ है, न कि श्रीमद्भागवत पुराण या रामचरितमानस। यह एक लम्बी, प्रतीकात्मक और दार्शनिक कविता है।
2. ‘राम की शक्ति पूजा’ कविता विषयक असंगत कथन है –
(1) यह कविता ‘अनामिका’ के द्वितीय संस्करण में संकलित है।
(2) यह सर्वप्रथम ‘दैनिक भारत’ नामक पत्र में प्रकाशित हुई।
(3) इसमें ‘तुलसीदास’ और ‘सरोज स्मृति’ दो कविताओं का सार तत्व है। — डॉ. रामविलास शर्मा
(4) इनमें से कोई नहीं
उत्तर: एवं व्याख्या: (4)
क्योंकि सभी कथन संगत हैं। रामविलास शर्मा ने ‘राम की शक्ति पूजा’ में ‘तुलसीदास’ और ‘सरोज स्मृति’ दोनों का सार निहित माना है। यह कविता सर्वप्रथम ‘दैनिक भारत’ पत्र में प्रकाशित हुई और बाद में ‘अनामिका’ के द्वितीय संस्करण में संकलित की गई।
3. ‘राम की शक्ति पूजा’ कविता के संदर्भ में कौन-सा तथ्य गलत है?
(1) धर्म और अधर्म के शाश्वत संघर्ष का चित्रण है।
(2) यह कविता छायावादी काव्य की एक उत्कृष्ट रचना है।
(3) यह मूलतः राम और सीता की प्रणय गाथा है।
(4) “रवि हुआ अस्त: ज्योति के पत्र पर लिखा अमर।” — प्रारंभिक पंक्ति है।
(5) सूक्ष्मता-स्तर पर विचरण करने वाली अर्थ-योजना अप्रतिम है।
उत्तर एवं व्याख्या : (3)
कथन (3) गलत है। क्योंकि यह कविता मूलत: राम और सीता की प्रणय गाथा नहीं, बल्कि शक्ति-साधना और कर्मयोग का प्रतीकात्मक आख्यान है।
4. “हे पुरुषसिंह, तुम भी यह शक्ति करो धारण।” — उक्त कथन किसका है?
(1) जामवंत
(2) हनुमान
(3) लक्ष्मण
(4) विभीषण
उत्तर एवं व्याख्या : (1)
उक्त कथन जामवंत का है। उन्होंने श्रीराम को शक्ति-साधना का उपदेश दिया है।
5. “यह नहीं रहा नर–वानर का राक्षस से रण।” — उक्त कथन किसका है?
(1) राम
(2) लक्ष्मण
(3) सुग्रीव
(4) विभीषण
उत्तर एवं व्याख्या :(1)
यह कथन राम का है। इसमें युद्ध के अत्यंत गंभीर और प्रतीकात्मक स्वरूप को अभिव्यक्त किया गया है।
6. ‘राम की शक्ति पूजा’ की यौगिक प्रक्रिया का स्रोत क्या है?
(1) वेदांत
(2) नववेदांत
(3) योगवशिष्ठ
(4) हठयोग
उत्तर एवं व्याख्या : (4)
‘राम की शक्ति पूजा’ की यौगिक प्रक्रिया हठयोग पर आधारित है।
7. महाप्राण निराला ने ‘राम की शक्ति पूजा’ किससे प्रेरित होकर लिखी?
(1) वाल्मीकि रामायण (2) गीतांजलि
(3) कृत्तिवास रामायण (4) रामचरितमानस
उत्तर एवं व्याख्या : (3)
महाप्राण निराला ने ‘कृत्तिवास रामायण’ से प्रेरणा लेकर यह कविता रची।
8. “धिक् जीवन को जो पाता ही आया विरोध” — उक्त पंक्ति में किसके जीवन-सत्य की अभिव्यक्ति है?
(1) सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’
(2) हनुमान
(3) लक्ष्मण
(4) विभीषण
उत्तर एवं व्याख्या : (1)
यह पंक्ति श्रीराम के माध्यम से निराला के जीवन-सत्य और संघर्ष की अभिव्यक्ति भी प्रस्तुत करती है।
9. ‘राम की शक्ति पूजा’ किस श्रेणी की कविता है?
(1) महाकाव्य
(2) मुक्त काव्य
(3) लम्बी कविता
(4) इनमें से कोई नहीं
उत्तर एवं व्याख्या : (3)
‘राम की शक्ति पूजा’ एक लम्बी, प्रतीकात्मक और दार्शनिक कविता है।
10 सूची–1 को सूची–2 से सुमेलित कीजिए
सूची–1
(अ) होगी जय, होगी जय, हे पुरुषोत्तम नवीन।
(ब) कहती थीं माता मुझको सदा राजीव नयन।
(स) कितना श्रम हुआ व्यर्थ, आया जब मिलन समय।
(द) रावण अशुद्ध होकर भी यदि कर सका त्रस्त…
सूची–2
(1) शक्ति
(2) राम
(3) विभीषण
(4) जामवंत
विकल्प:
(a) (अ)–(1), (ब)–(2), (स)–(3), (द)–(4)
(b) (अ)–(2), (ब)–(1), (स)–(4), (द)–(3)
(c) (अ)–(3), (ब)–(4), (स)–(2), (द)–(1)
(d) (अ)–(1), (ब)–(2), (स)–(4), (द)–(3)
उत्तर एवं व्याख्या:(a)
सूची–1 को सूची–2 से यथावत और तर्कसंगत रूप में सुमेलित किया गया है।
11. “शक्ति की करो मौलिक कल्पना, करो पूजन,
छोड़ दो समर जब तक न सिद्धि हो, रघुनंदन।”
इन पंक्तियों में श्रीराम को शक्ति-साधना हेतु कौन प्रेरित कर रहा है?
(1) हनुमान
(2) जामवंत
(3) विभीषण
(4) लक्ष्मण
उत्तर एवं व्याख्या : (2)
इन पंक्तियों में जामवंत श्रीराम को शक्ति-साधना के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
12. “धिक् जीवन को जो पाता ही आया विरोध,
धिक् साधन, जिसके लिए सदा ही किया शोध!”
इस काव्यांश में श्रीराम की मनोदशा क्या है?
(1) हताशा
(2) क्रोध
(3) उन्माद
(4) समर्पण
उत्तर एवं व्याख्या : (1)
इस काव्यांश में श्रीराम की हताशा और आत्मसंघर्ष की मनोदशा प्रकट होती है।
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