रीतिकाल का वर्गीकरण : रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध और रीतिमुक्त
रीतिकाल का वर्गीकरण :
रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध और रीतिमुक्त
आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने रीतिकालीन काव्य को तीन श्रेणियों – रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध और रीतिमुक्त – में विभाजित किया है। यह विभाजन रीतिकाल के कवियों की रचनात्मक प्रवृत्ति, उनकी काव्य–दृष्टि और शास्त्रीय अनुशासन के आधार पर किया गया है। इस वर्गीकरण से रीतिकालीन काव्य की विविध दिशाओं, प्रवृत्तियों और काव्यात्मक चेतना का स्पष्ट ज्ञान होता है।
रीतिबद्ध काव्य
रीतिबद्ध कवि कविता की बंधी–बंधाई परिपाटी और शास्त्रीय बंधनों से बंधे हुए थे। इनकी कविता निश्चित छंद, रस और अलंकारों के अनुशासन में ढली हुई दिखाई पड़ती है। रीतिबद्ध कवि नायक–नायिका भेद, रसशास्त्र, अलंकारशास्त्र, छंदशास्त्र आदि के अनुरूप उदाहरण–शैली में कविता रचते थे। उनका उद्देश्य शास्त्र के सिद्धांतों का व्यावहारिक रूप से प्रदर्शन करना था।
आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र के अनुसार, ‘रीतिबद्ध’ रचना लक्षणों और उदाहरणों से युक्त होती है। किन्तु डॉ. नगेन्द्र इस प्रकार की रचनाएँ करने वाले कवियों को रीतिबद्ध कवि कहने के पक्ष में नहीं हैं। उनका मत है कि इन कवियों ने काव्यशास्त्र का सोदाहरण विवेचन कर काव्य–शिक्षकों का कार्य किया है, इसलिए ये कवि रीतिबद्ध नहीं बल्कि आचार्य कवि कहलाने योग्य हैं।
रीतिसिद्ध काव्य
रीतिसिद्ध परंपरा में वे कवि सम्मिलित हैं जिन्होंने कोई लक्षण–ग्रंथ नहीं लिखा, परंतु उनकी रचनाओं में शास्त्र का अनुशासन और सौंदर्य स्वतः ही प्रकट होता है। इन कवियों ने अपने काव्य–अनुभव में शास्त्र की आत्मा को जीवंत कर दिया। इस परंपरा के प्रमुख कवि बिहारी हैं, जिनके प्रत्येक दोहे में गूढ़ अर्थ, शास्त्रीय मर्यादा और कथन–भंगिमा का अद्भुत संतुलन दिखाई देता है। उनके काव्य में सहज भाव, सूक्ष्म संवेदना और शास्त्रीय गहराई का सुंदर समन्वय मिलता है।
रीतिमुक्त काव्य
रीतिमुक्त कवि वे हैं जिन्होंने रीतिकाल में जड़ हो चुकी साहित्यिक रूढ़ियों और जड़–सौंदर्यशास्त्र का विरोध किया। उन्होंने अपने व्यक्तिगत अनुभवों, आत्मानुभूतियों और जीवन–संवेदनाओं को काव्य की आधारभूमि बनाया। इस धारा के कवियों ने रचना की स्वतंत्रता और मौलिकता को प्राथमिकता दी। उन्होंने कविता को हृदय की गहराइयों से निकली अनुभूतियों, मानवीय भावनाओं और नवीन बिंबों से जोड़ा। रीतिमुक्त काव्य में सौंदर्य की नवीन दृष्टि और भाव–विकास की आत्मिक छवि दिखाई देती है।
लेखक: दिनेश नागर,
राजस्थान।
https://www.anubbutisevimarshtak.com/2025/10/blog-postritikal-ki-visheshata.html
रीतिकालीन काव्य स्वरूप और विशेषताएँ
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